एक छोट्टी सी गुडिया,
थोरी सी मोटी,
थोरी सी नटखट
थोरी सी गोल
पर बहुत अनमोल
“सुनो ना” से शुरु जो होती थी,
कभी बंद ना होती थी
कभी चिल्लाना,
कभी समझाना,
कभी ब्रूम ब्रूम,
कभी रुलाना,
कभी हसाना
फिर एक दिन,
गुडिया दूर चली गयी…
अजीब सी ख़ामोशी थी,
जैसे खुशियाँ यादें बन गयी है,
यादें पल बन गया है,
पल क्षण बन गया है,
क्षण समय बन गया है,
समय तो रुक ही गया था…
सबेरा हुआ,
समय चल रहा था…
गुडिया बहुत खुश थी,
जिंदगी मुस्कुरा रही है फिर से
अब नहीं लगता दूर है
अब तो बहुत पास है
मेरी छोट्टी सी गुडिया